प्यार... कितनी बार..??

           सुबह की चाय के साथ समाचार पत्र पढ़ते समय अचानक एक खबर के शीषर्क पर मेरी नजर ठहर  गई। फेसबुक से शुरू हो रिश्ता ख़त्म होने की कगार पर शीषर्क पढ़ कर मैंने सोचा कोई दोस्ती बगैरह का मैटर रहा होगा फिर भी चलो एक बार पढ़ ही लेती हूं। खबर पढ़ कर समझ आया कि फेसबुक पर दोस्ती प्यार में बदली और फिर शादी हो गई। शादी को एक साल ही गुजरा है लेकिन तलाक की नौबत आ गयी। पति-पत्नी एक छत के  नीचे रहने के बावजूद  आपस में बात नहीं कर रहे हैं, जरूरत पड़ने पर फेसबुक पर ही बात होती है । इस खबर को पढ़ने के बाद मैंने झुंझलाते हुए कहा, साला रिश्तों को मजाक बना रखा है, जब निभा नहीं सकते तो शादी और प्यार करते ही क्यों हैं। उसके बाद मैं अतीत की यादों में खो गई।  स्नेहा की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। स्नेहा का अपने पति से झगड़ा हुआ कि स्नेहा की मां ने गनेश को फोन लगाया ...... हेलो बेटा स्नेहा का आकाश से झगड़ा हो गया और उसने घर छोड़ दिया। गनेश ने हड़बड़ाते हुए पूछा अब इतनी रात में वो कहां गयी होगी......। स्नेहा की मां का फोन कट चुका था। गनेश ने जल्दी से स्नेहा के पति आकाश को फोन लगाया ...... चिल्लाते हुए पूछा ....क्या हुआ? उधर से स्नेहा के रोने की आवाज सुनाई पड़ते ही गनेश ने आकाश से तेज आवाज में पूछा, क्या रोज-रोज का ड्रामा लगा रखा है? तुम उसे अकेला मत समझो, आकाश ने उधर से कुछ कहा। पर गनेश ने आकाश की एक बात ना सुनी उसे तो बस स्नेहा के रोने की आवाज से फर्क पड़ रहा था। फोन कट चुका था पर गनेश के चेहरे के भाव साफ पढ़े जा सकते थे। इतना सब देखने के बाद आखिर मैं बोल ही पड़ी क्या हुआ समथिंग सीरियस? आप इतना परेशान क्यों हो? थोड़ी देर चुप रह कर, मैंने अपनी बात को कन्टीन्यू करते हुए कहा वैसे भी स्नेहा कोई बच्ची नहीं है तो क्यों आप उसे लाइक ए चाइल्ड ट्रीट कर रहे हो? उसे अपना अच्छा बुरा पता है............... रहीं बात आकाश की, तो वो भी इन्सान है स्नेहा को मार नहीं डालेगा ......!! इतनी देर से चुपचाप बैठा गनेश धीरे से बोला नहीं हर्षिका तुम नहीं जानती हो, स्नेहा अगर थोड़ी देर रोती है तो उसकी सांसे रूक जाती हैं और ऐसे में इंसान मर भी सकता है। गनेश की बात सुनकर मैं खामोश हो गयी। उस रात के अंधेरे में हम दोनों की खामोशी बिखर कर रह गयी। मैं गनेश की दूर की रिश्तेदार थी साथ ही उसकी रूममेट भी। अगली सुबह मेरी नींद खुली तोे देखा कि गनेश जा चुका था। थोड़ी ही देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने उठकर दरवाजा खोला तो देखा सामने स्नेहा और उसकी मां खड़ी थीं। गनेश उन्हें अपने साथ घर ले आया था।
        मुझे यह सब कुछ थोड़ा अटपटा सा लगा। फिर भी मैंने स्नेहा के आवभगत में कोई कमी न छोड़ी। स्नेहा का इस तरह से घर छोड़ कर जाना आकाश को नागवार गुजरा और शायद यही वजह उनके रिश्ते में कभी ना भरने वाली खाई बन गयी। इधर स्नेहा को मेरे पास छोड़ गनेश काम पर निकल गया। अब घर पर बस मैं और स्नेहा रह गये थे। फिर शुरू होता है हम दोनों की बातों का सिलसिला। बातों ही बातों में स्नेहा के ढेरों राज मेरे सामने खोल खुल चुके थे। स्नेहा और आकाश की शादी को यूं तो एक ही साल गुजरा था, लेकिन उससे पहले भी स्नेहा सिंगल न थी। स्नेहा किसी और से प्यार करती थी, पर ये कह पाना मुश्किल है कि वह खुशनसीब था कौन? कानपुर वाला विकास, नोएडा वाला गनेश या फिर बरेली वाला नितिन....??
       स्नेहा ने मुझे बताया,  ‘‘अगर मेरी शादी आकाश से न होती तो नितिन से होनी तय थी।’’ नितिन..... वही नितिन ...! जिससे उसकी मुलाकात मैट्रीमोनियल साइट पर हुई थी। मैट्रीमोनियल की ही तो देन उसका एक साल पुराना पति आकाश है। बात यहीं खत्म नहीं होती है नितिन और आकाश के अलावा कानपुर वाला विकास जो शायद उसका पहला प्यार था। लेकिन मेरे मन में एक सवाल बार-बार दस्तक दे रहा था कि गनेश इस लिस्ट में अपने को पहले नंबर पर रखता है, लेकिन ये क्या..!! स्नेहा ने गनेश से शादी की बात तो दूर .....उसके प्यार का जिक्र तक न किया। इन बातों ने मुझे बुरी तरह उलझा दिया। मैं  हैरान थी और थोड़ा परेशान भी कि आखिर सच क्या है?
       स्नेहा की जिंदगी में गनेश सिवाय एक हेल्पर के कुछ न था। वहीं गनेश की जिंदगी में स्नेहा के लिए असीम स्नेह था। .... मेरे लिए ये स्टोरी किसी भूलभूलैया से कम न थी। इसे जानना मेरे लिए बहुत जरूरी था क्योंकि मैं और गनेश दोनों एक दूसरे को पसंद तो करते ही थे, शायद प्यार भी।
मुझे स्नेहा के आने से पहले ही दोनों के अतीत के बारे में सब पता था। जिसका जिक्र स्नेहा ने किया जरूर लेकिन वैसे नहीं जैसे गनेश ने मुझे बताया था। स्नेहा और गनेश का 5 साल का रिश्ता था पर किन्ही वजहों से वो एक ना हो पाए। एक न होने का असली रीजन क्या था ये तो भगवान ही जाने पर दोनो के रीजन में जमीन आसमान का फर्क सामने आया। वक्त कब किसका इंतजार करता है, वह तो अपनी रफ्तार से दौड़ता रहा। समय के साथ एक के बाद एक राज खुलते गये। एक रोज किसी बात को लेकर हम तीनों में कहा सुनी हो गयी। तब मैंने पहली बार स्नेहा का एक नया रूप देखा। मेरे हालात समुद्र में डूबते मछुआरे जैसे थे जिसे तैरना तो आता है पर अथाह समुद्र में आखिर कहां तक तैरे। कल तक जो जो कहती थी कि गनेश से उसका कोई वास्ता नहीं है। आज वही गनेश को अपने इशारों पर नचा रही है। ये क्या स्नेहा कल तक गनेश के खिलाफ एक छोटी सी बात पर सबूत इकट्ठा करने में जुटी थी वही आज गनेश की हमदर्द बनी बैठी है....!!! जिस तरह गनेश स्नेहा की हां में हां मिलाता, उसे देखकर मेरे मन में क्या, किसी के भी मन में ये सवाल आना लाजमी था कि कहीं दोनों को फिर से प्यार तो नहीं हो गया..?? गनेश की खामोशी मेरे सब्र का बांध धीरे-धीरे तोड़ रही थी। और शायद मैं सही थी...........,, वक्त के साथ गनेश ने स्नेहा के लिए एक-एक कर अपने रिश्ते तोडे़, घर छोड़ा और यहां तक कि अपने बेस्ट फे्रेंड जिसके लिए मैं गनेश को उसके नाम से छेड़ा करती थी उससे भी मुंह मोड़ लिया। और मेरा चैप्टर..... गनेश की जिंदगी में कब क्लोज हुआ मुझे भी नहीं मालूम। अक्सर सुनती आयी हूं कि प्यार बार-बार नहीं होता पर स्नेहा को देखकर ऐसा लगता है कि प्यार भी सावन के बादलों की तरह  है जो कहीं भी बरस जाते हैं।

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