ताई कहां है तू



                                   
आज मैं ताई से नाराज भी थी और उसके प्यार को खोने से दुखी भी। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे रास्ता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। मन में बार-बार एक ही आवाज आ रही थी - कहां है ताई तू एक बार मिल जा, फिर वो सब पूंछ लूगी जो तू बताना चाहती थी मुझे। मुझ से हर बार यही कहती था न ताई तू - सब बताऊंगी तू सब्र कर। ताई तू ऐसा कैसे कर सकती है। हर बार तू ही अपनी जिद मनवा लेती है। ताई तू तो महान है इस बार भी तू ही जीत गयी ताई।   
    बात उन दिनों की है जब मैंने जॉब्‍ चेंज की थी। मुझे घर से ऑफिस तक जाने के लिए दो ऑटो लेने पड़ते थे। एक दिन जैसे ही ऑटो से उतर दूसरे ऑटो में बैठने के लिए पैदल चल रही थी कुछ भीख मांगने वाले बच्चों ने आ घेरा, दीदी कुछ खाना है पैसे दे दो। मेरा उपवास था वहां आसपास नजर दौड़ाई तो एक बुजुर्ग महिला जिसकी उम्र 60 से ऊपर ही होगी, फलों का ठेला लगाए दिखी। बस फिर क्या था मैंने उन दोनो बच्चों से कहा, चलो वहां कुछ खाते हैं। मैं दोनो बच्चों को लेकर फलों के ठेले पर पहुंच गयी। ज्यादा फल नहीं थे, थोड़ अमरूद, केले, अंगूर और कुछ-कुछ रखे थे वो भी ताजे नहीं लग रहे थे। मैंने उस बुजुर्ग महिला को आवाज लगाई अमरूद क्या रेट हैं आंटी? पर उन्होंने सुना नहीं तो मैंने मजाकिया अंदाज में कहा, सुन ले ताई, देर हो रही है। मेरा ताई कहना और उनका पलट कर देखना एक पल को तो मुझे लगा कहीं इन्हे बुरा तो नहीं लग गया। ताई बोली, बता छोरी क्या चाहिए। मैंने अमरूद और केले खरीद कर पास खड़े बच्चों को दे दिए, उन्हीं में से दो अमरूद अपने बैग में डाल लिए। आंटी को पैसे देकर मैं तो आगे बढ़ गयी। ऑटो में बैठने के बाद देखा कि वो आंटी मुझे अभी भी देख रहीं हैं। बस वहीं से शुरू हुआ था ताई से मिलने का सिलसिला। ताई से खरीदे अमरूद ऑफिस में बैठकर खाए तो बहुत टेस्टी लगे। अमरूद मुझे बहुत पसंद हैं। इसलिए मैं अब अक्सर सुबह-सुबह ताई के पास जाकर अमरूद खरीदने लगी। सुबह-सुबह इसलिए क्योंकि शाम को मेरे लौटने तक ताई जा चुकी होती थी।
     स्टार्टिंग में तो ताई मुझसे बात करती तो मुझे अजीब भी लगता कि ये इतना अपनापन क्यों दिखाती हैं। इनके यहां तो सुबह से शाम तक अनगिनत लोग फल खरीदने वाले आते होंगे। इतनी भीड़ में इन्हें मेरा चेहरा ही याद क्यों रहता है उसकी वजह थी कि अक्सर सेक्स रैकेट में फंसी लड़कियों की कहानी दिमाग में रहती थी। लेकिन ताई का वो अपनापन जिसमें वो बिल्कुल मां जैसी लगती थी, ने मेरा डर दूर कर दिया। धीरे-धीरे ताई से एक रिष्ता बन गया था, अगर मैं कभी जल्दी में होती तो ताई आवाज लगाती, निकला जा चुपके से कहीं ताई देख ना ले। दुर्भाग्य से मेरे कोई दूर के रिष्ते में भी ताई नहीं हैं। पापा तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं, चाची, मौसी, बुआ, मामी, दादी, भाभी सभी हैं पर कहीं दूर-दराज तक ताई नहीं है। फलों वाली ताई मैं फल लूं या ना लूं पर मुझ से बात जरूर करती थी। जब भी कुछ लेती थी उनसे मैं, ताई तोलते हुए डांटती रहा करती थी, कुछ खा लिया कर कितनी पतली है तू कब मोटी होगी। यू ंतो कोई मुझे तू बोले तो हजम नहीं होता, लेकिन ताई बोलती तो शुरूआत में तो बुरा लगा फिर समझ आया ताई हरियाणा के साइड की हैं इस लिए ऐसे बोलती हैं। मैं भी बड़े मजे लेकर उन से हरियानवी में बात करने की कोषिष किया करती थी, और वो हंसती रहा करती थी। सुबह-सुबह ताई मुझे देख ऐसे मुस्काराती जैसे वो मेरा इंतजार ही कर रही थी, मैं भी मुस्कराकर कहती, ताई रामराम! कैसी हो? ताई पलटकर कहती, रामराम मैं तो ठीक हूं , तू बता टिफिन लेकर जाती है या नहीं। मैं बोलती हां ताई ।
ताई और मेरा ये सिलसिला रोज का हो गया था। ताई को पता चल गया था कि मुझ अमरूद पसंद हैं, इसलिए अमरूद की सीजन में ताई अच्छे अमरूदों में से छांटकर मुझे पकड़ाते हुए कहती थी, ले तू चख के बता कैसा है? मैं मना करती पर ताई के आगे मेरी एक ना चलती। ताई मुझसे कभी कुछ खरीदने को नहीं कहती थी। मैं भी अक्सर लंच में कुछ पैक करते समय ताई के लिए भी पैक कर लिया करती थी। ताई को पकड़ाते हुए कहती, ताई देख मैं लंच ले जाती हूं और तू मानती ही नहीं है, इसलिए ये तेरे लिए, ताई बिना कुछ कहे चुपचाप से ले लेती उसकी वो मुस्कराहट मुझे कितना सुकून देती थी, शब्दों बता पाना मुश्किल है।
     एक रोज ताई सुबह -सुबह बड़ी उदास दिख रही थी तो मैंने बोला, ताई रामराम! क्या हुआ, तबियत ठीक नहीं है क्या? ताई बोली, तबियत ठीक है। तेरे पास कुछ रूपए हैं क्या? मैंने बोला, ताई तुझे चाहिए क्या, कितने चाहिए? ताई बोली कल लौटा दूंगी बस डेढ़ सौ। मैंने ताई को रूपए पकड़ाते हुए कहा, ताई कर दी न छोटी बात। मैंने पूछा, और चाहिए, क्या हुआ, कोई समस्या है क्या? ताई ने बिना कुछ बताये बस इतना ही कहा, नहीं बस बहुत हैं। तू जा लेट हो रही होगी। मैं कुछ सोचते हुए अपने ऑटो में जाकर बैठ गई। ये ताई भी कैसी है, न कभी मेरे बारे में पूछती है कि मैं कहां रहती हूं और क्या करती हूं बस उसे इतना पता है कि मैं आफिस जाती हूं, और इस रास्ते से रोज गुजरती हूं। न खुद के बारे में बताती है, बस मुझे इतना पता है कि वो हरियाणा से है और दो साल से यहीं फल बेचती है। ताई दो दिन तक नहीं आई। मुझे लगा कहीं बीमार तो नहीं हो गई? जब तीसरे दिन सुबह ताई मिली तो मैंने पूछा, क्या ताई, बिना बताए ही छुटटी मार लेती हो। ताई ने आज केला देते हुए कहा, ले खा गुस्से में खून मत जला। ताई ने मुझे पैसे लौटा दिये मैंने बहुत मना किया पर ताई न मानी और पैसे देकर ही मानी। मैंने भी गुस्से का नाटक करते हुए कहा, आज के बाद ताई मैं तुम्हारी बात नहीं मानूंगी। उसके बाद हमारा फिर वही सिलसिला चालू रहा। ताई को संडे हमेशा याद रहता था और मुझसे सेटरडे को ही कहती, कल तो तेरी छुटटी है। मुझे याद है ताई ने एक दिन कुछ कहा तो मैंने बोला ताई तुझे कहीं जाने नहीं दूंगी, अगर चली भी गयी तो ढूंढ के निकाल लूंगी। मैं ताई से कुछ पूंछती तो ताई का एक ही उत्तर होता, सब्र कर सब बताऊंगी एक दिन। ताई कहीं जाती तो मुझे पहले से ही बता दिया करती थी, उसके बताने का अंदाज- ये ले खा ले दो दिन के लिए जा रही हूं, ध्यान रखना अपना।
   यूंही मेरा और ताई का रिष्ता दो साल से लगातार चला आ रहा था। आज 15 दिन से ज्यादा हो चुके हैं पर ताई नहीं आई। मुझसे रहा न गया तो मैंने पास वाले एक अंकल से पूछा, अंकल यहां वो ताई जो फल बेचा करती थी कहां चली गयी? अब आती क्यों नहीं हैं? अंकल ने लंबी सांस लेते हुए बोला, बेटा अब वो कभी नहीं आएगी। मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने बोला क्या मतलब अंकल? अंकल ने बताया, बहुत पहले उसका पूरा परिवार रोड एक्सीडेंट में खत्म हो गया था, एक बेटी बच गयी थी। आज से 4 साल पहले बेटी को डेंगू हुआ था। बुढ़िया ने सारा पैसा इलाज मैं खर्च कर दिया लेकिन बेटी को बचा नहीं पायी। उसके बाद पेट पालने के लिए बुढ़िया यहां फल बेचा करती थी। कभी-कभी मन करता था तो अपने गांव जोकि हरियाणा में था, घूम आया करती थी। लेकिन आज से पंदह दिन पहले हार्ट अटैक से उसकी मौत हो गयी। गांव के लोग उसकी डेड बॉडी और सारा सामान ले गये। मेरे लिए ये किसी सदमें से कम न था। गोरा रंग और पांच फुट तीन इंच के लगभग लंबाई, चेहरा बड़ी गंभीरता से सबकुछ छिपाने में उस्ताद, हमेशा मुस्काराहट ही तो देखी थी उनके चेहरे पर, ऐसी ही तो थी ताई। आज ताई अपनी हर बात बिना कहे ही समझा गयी थी। वो मेरा इंतजार करना, मुझसे बातें करना, दूर तक जाते देखना, मुझे जबरदस्ती फल खिलाना, हक से डांटना सब समझ आ गया था। शायद मुझमें वो अपनी बेटी को ढूढ़ा करती थी। इसीलिए ताई ने कभी नहीं पूछा कि घर में कौन-कौन है? मां-पापा कहां हैं? लेकिन ताई आज मैं तुझसे बहुत नाराज हूं, तूने ये सब मुझे क्यों नहीं बताया? तुझे क्या लगा तेरे बताने से मेरा प्यार कम हो जाएगा या मैं तेरा भरोसा नहीं करती? ताई आज तुझे हग करले का बड़ा मन कर रहा है .... आई मिस यू ताई .... अमरूद तो अभी भी मिलते हैं पर उनमें वो मिठास नहीं ताई जो तेरे हाथ से दिए अमरूदों में हुआ करती थी।

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